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बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

जे एन यू परिघटना पर लेखकों का बयान

हम हिन्दी के लेखक देश के प्रमुख विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 9 फरवरी को हुई घटना के बाद से जारी पुलिसिया दमन पर पर गहरा क्षोभ प्रकट करते हैं। दुनिया भर के विश्वविद्यालय खुले डेमोक्रेटिक स्पेस रहे हैं जहाँ राष्ट्रीय सीमाओं के पार सहमतियाँ और असहमतियाँ खुल कर रखी जाती रही हैं और बहसें होती रही हैं। यहाँ हम औपनिवेशिक शासन के दिनों में ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में भारत की आज़ादी के लिए चलाये गए भारतीय और स्थानीय छात्रों के अभियानों को याद कर सकते हैं, वियतनाम युद्ध के समय अमेरिकी संस्थानों में अमेरिका के विरोध को याद कर सकते हैं और इराक युद्ध मे योरप और अमेरिका के नागरिकों और छात्रों के विरोधों को भी। सत्ता संस्थानों से असहमतियाँ देशद्रोह नहीं होतीं। हमारे देश का देशद्रोह क़ानून भी औपनिवेशिक शासन में अंग्रेज़ों द्वारा अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को दबाने के लिए बनाया गया था जिसकी एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक समाज में कोई आवश्यकता नहीं। असहमतियों का दमन लोकतन्त्र नहीं फ़ासीवाद का लक्षण है।
इस घटना में कथित रूप से लगाए गए कुछ नारे निश्चित रूप से आपत्तिजनक हैं। भारत के टुकड़े करने या बरबादी की कोई भी ख़्वाहिश स्वागतेय नहीं हो सकती। हम ऐसे नारों की निंदा करते हैं। साथ में यह भी मांग करते हैं कि इन विडियोज की प्रमाणिकता की निष्पक्ष जांच कराई जाए। लेकिन इनकी आड़ में जे एन यू को बंद करने की मांग, वहाँ पुलिसिया कार्यवाही और वहाँ के छात्रसंघ अध्यक्ष की गिरफ्तारी कतई उचित नहीं है। जैसा कि प्रख्यात न्यायविद सोली सोराबजी ने कहा है नारेबाजी को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता। यह घटना जिस कैंपस में हुई उसके पास इससे निपटने और उचित कार्यवाही करने के लिए अपना मैकेनिज़्म है और उस पर भरोसा किया जाना चाहिए था।
हाल के दिनों में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में ख्यात कवि और विचारक बद्रीनारायण पर हमला, सीपीएम के कार्यालयों पर हमला, दिल्ली के पटियाला कोर्ट में कार्यवाही के दौरान एक भाजपा विधायक सहित कुछ वकीलों का छात्रों, शिक्षकों और पत्रकारों पर हमला बताता है कि देशभक्ति के नाम पर किस तरह देश के क़ानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इन सबकी पहचानें साफ होने के बावजूद पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही न किया जाना इसे सरकारी संरक्षण मिलने की ओर स्पष्ट इशारा करता है। असल में यह लोकतन्त्र पर फासीवाद के हावी होते जाने का स्पष्ट संकेत है। गृहमंत्री का एक फर्जी ट्वीट के आधार पर दिया गया गंभीर बयान बताता है कि सत्ता तंत्र किस तरह पूरे मामले को अगंभीरता से ले रहा है। ऐसे में हम सरकार से मांग करते हैं कि देश में लोकतान्त्रिक स्पेसों को बचाने, अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार की रक्षा और गुंडा ताकतों के नियंत्रण के लिए गंभीर कदम उठाए। जे एन यू छात्रसंघ अध्यक्ष को फौरन रिहा करे, आयोजकों का विच हंट बंद करे, वहाँ से पुलिस हटाकर जांच जेएनयू के प्रशासन को सौंपें तथा पटियाला कोर्ट में गुंडागर्दी करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा दें।
______________________
हस्ताक्षर 

मंगलेश डबराल
राजेश जोशी
ज्ञान रंजन
पुरुषोत्तम अग्रवाल
उदय प्रकाश 
अरुण कमल 
पंकज बिष्ट
रमेश उपाध्याय 
मैत्रेयी पुष्पा 
जगदीश्वर चतुर्वेदी 
अलका सरावगी 
रोहिणी अग्रवाल 
असद ज़ैदी
उज्जवल भट्टाचार्य (जर्मनी)
राजेन्द्र शर्मा 
मोहन श्रोत्रिय
ओम थानवी
सुभाष गाताडे
अरुण माहेश्वरी
नरेंद्र गौड़
बटरोही
अनिल जनविजय (रूस)
कुलदीप कुमार
सुधा अरोड़ा
सुमन केशरी
नन्द भारद्वाज
ईश मिश्र
लाल्टू
कुमार अम्बुज
विनोद दास 
शमसुल इस्लाम
सुधीर सुमन
ऋषिकेष सुलभ 
विनोद दास
राजकुमार राकेश
हरिओम राजोरिया
अनिल मिश्र
नंदकिशोर नीलम
अरुण कुमार श्रीवास्तव
मधु कांकरिया
सरला माहेश्वरी
वंदना राग
मुसाफिर बैठा
अरविन्द चतुर्वेद
प्रमोद रंजन
हिमांशु पांड्या
वैभव सिंह
मनोज पाण्डेय
पंकज चतुर्वेदी
पवन करण  
महेश पुनेठा 
प्रज्ञा 
शिरीष कुमार मौर्य
अशोक कुमार पाण्डेय 
वर्षा सिंह
विशाल श्रीवास्तव
उमा शंकर चौधरी
चन्दन पाण्डेय
असंग घोष
विजय गौड़ 
अरुणाभ सौरभ
विमलेश त्रिपाठी 
देवयानी भारद्वाज
पंकज श्रीवास्तव
कविता
दिनेश कर्नाटक 
संज्ञा उपाध्याय 
सुयश सुप्रभ 
गोपाल राठी 
दिनेश राय द्विवेदी 
सुजाता 
शेखर मल्लिक 
हरप्रीत कौर
अनुप्रिया
राकेश पाठक
संजय जोठे
रामजी तिवारी
कृष्णकांत
मनोज पटेल 
देश निर्मोही 
दीप सांखला 
अमलेंदु उपाध्याय
प्रमोद धारीवाल 
अनिल कार्की 
देवेन्द्र कुमार आर्य 
प्रमोद कुमार तिवारी 
अरविंद सुरवाड़े (मराठी)
आलोक जोशी 
रोहित कौशिक 
मनोज छबड़ा 
अमिताभ श्रीवात्सव 
ऋतु मिश्रा 
कनक तिवारी 
ईश्वर चंद्र 
नित्यानन्द गाएन
शशिकला राय 
पंकज मिश्रा 
कपिल शर्मा (सांगवारी)
विभास कुमार श्रीवास्तव 
मेहरबान सिंह पटेल 
सुशील स्वतंत्र 
अनिल जैन 
ऋतुपर्ण मुद्राराक्षस 
इन्द्र मणि उपाध्याय 
आनंद पाण्डेय 
विभाष कुमार श्रीवास्तव 
हिमांशु कुमार 
सीमा आज़ाद 
पुनीत मैनी 
प्रियम्वदा समर्पण 
अभिषेक गोस्वामी 
अंजुले एलुजना 
देवांशु वत्स 
सारंग उपाध्याय 
अकरम हुसैन कादरी 
एम एल राठौर 
अरुण चवाई 
ईश मधु तलवार 
यतीन्द्र नाथ सिंह 
विवेक दत्त मथूरिया 
रजनीश साहिल 
निशांत यादव 
फैसल अनुराग 
नवीन रमण 
नीतीश ओझा 
दुर्गेश कुमार मल्ल 
जयंत श्रीवास्तव 
राजकुमार त्रिपाठी 
प्रेरणा प्रथम सिंह 
मनोज पटेल 
सुमंत पाण्ड्या 
रुचि भल्ला 
प्रशांत प्रियदर्शी 
अनूप शुक्ल 
जिया उर रहमान 
लोकमित्र गौतम
दीप सांखला 
डा अजित 
रूपाली सिन्हा 
अमलेंदु उपाध्याय 
नवनीत 
अनंत भटनागर 
चन्द्रकला पाण्डेय 
डा कान्ति शिखा 
आशालता श्रीवास्तव 
तनवीर 
अमृता नीरव 
अतुल अरोरा 
हरपाल सिंह आरुष 
आलोक जोशी 
रोहित कौशिक 
चंचल बी एच यू 
विजय शंकर सिंह 
राहुल हुड्डा 
उषा बंगा 
अभिषेक पाल 
अरविंद कुमार खेड़े 
प्रतिमा जोशी 
मुकेश तिवारी 
जे सी पाठक 
प्राणेश कुमार 
ईश्वर चंद्र 
कनक तिवारी 
नीरज सिंह 
विजय तैलंग 
शशि शर्मा 
नवेन्दु सिंह 
कमलेश वर्मा 
शिप्रा शुक्ला 
शशिकला राय 
मुकेश मधुकर 
राजेश कुमार पाण्डेय 
बिजय पाण्डेय 
मनोज कुमार पाण्डेय 
इकबाल मसूद 
अजय राय 
चंद्रपाल सिंह
दुर्गेश पाण्डेय 
विजय कुमार सिंह 
राम मोहन त्रिपाठी 
गोविंद माथुर 
सुरेश कांटक 
अटल तिवारी 
अवनीश गौतम 
हनीफ मदार 
पंकज बर्नवाल 
कविता पाण्डेय 
शालिनी सुभाष त्रिपाठी 
अग्नि शेखर 
विजय भट्ट 
नेहा नरुका 
अनूप सेठी 
गजेन्द्र वर्मा 
शमीम अहमद 
अरुण प्रकाश मिश्र
महेंद्र नेह 
उमाकांत चौबे 
रिशपाल सिंह विकल 
रेखा श्रीवास्तव 
राजेश कुमार मिश्र
प्रज्ञा जोशी 
अभिषेक अंशु 
मुनेश त्यागी 
किरण त्रिपाठी 
रवि कुमार 
आशुतोष सिंह 
डा कान्ति शिखा 
मानिता सरोज 
महेश कटारे सुगम 
















बुधवार, 21 अगस्त 2013

डा नरेंद्र दाभोलकर की नृशंस ह्त्या हमारी अग्रगामी चेतना की हत्या की कोशिश है

(स्वतंत्र भारत के इतिहास में डा नरेंद्र दाभोलकर की नृशंस ह्त्या हमारी अग्रगामी चेतना की हत्या की कोशिश है. यह एक प्रगतिशील मुल्क बनाने के हमारे सपने की हत्या की कोशिश है. इसकी निंदा करना तो बस एक सड़ी हुई परम्परा का निर्वाह होगा...यह असल में हमारे ताज़ा परम्परा निर्माण की कोशिशों की हत्या है. जिस निष्ठा के साथ वह लगातार पुरातनपंथी अंधविश्वासों से लड़ रहे थे, वह इन प्रतिगामी शक्तियों के अलमबरदारों को असह्य था. वे तर्कों में उनका मुक़ाबिला नहीं कर सकते थे तो उन्हें गोली मार दी. इसके पहले भी कई बार इन ताक़तों ने उनकी आवाज़ दबाने की कोशिशें की थीं. लेकिन वे नहीं जानते कि व्यक्ति के मरने से विचार नहीं मरते. उन विचारों के वाहक लाखों की संख्या में हैं और कटिबद्ध हैं. 

हम सभी वैज्ञानिक चेतना को अंगीकार करने वाले लोग इस घटना से आहत हैं, संतप्त हैं, क्रुद्ध हैं. हम इसकी निंदा कठोरतम शब्दों में करते हैं और उन कायर हत्यारों तथा उनके पीछे की गलीज़ ताक़तों को बता देना चाहते हैं कि वे अपनी चाल में कभी क़ामयाब नहीं होंगे..हम होने नहीं देंगे.

यह उस पत्र का ड्राफ्ट है जो हमने मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र सरकार को भेजने के लिए तैयार किया है. आप सभी मित्रों से सुझावों और समर्थन की दरकार है. - जनपक्ष टीम )




प्रति

 मुख्यमंत्री , महाराष्ट्र सरकार

मान्यवर,


आपको ख़ूब विदित होगा कि आप जिस राज्य का नेतृत्व कर रहे हैं , वहां प्रगतिशील विचारों की बड़ी समृद्ध परंपरा रही है . इस राज्य को शिवाजी महाराज से लेकर महात्मा फुले , सावित्री बाई फुले , डा बाबा साहब आम्बेडकर, आन्ना भाऊ साठे आदि का राजनीतिक सामजिक नेतृत्व प्राप्त हुआ है. यहाँ अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिए समर्पित व्यक्तिव डा नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या इस गौरवशाली परंपरा पर आघात करने का एक सुनियोजित षड़यंत्र है .


यद्यपि आप और आपके साथ राज्य के सभी नेताओं ने इस हत्या की घोर निंदा की है और त्वरित कारवाई की इच्छाशक्ति जतलाई है .आपने हत्यारों के बारे में जानकारी देने वालों को १० लाख रुपये की इनाम राशि भी घोषित की है . लेकिन स्पष्ट और घृणित इरादे के साथ की गई इस हत्या के पीछे के षड्यंत्रकारियों की पहचान इतना जटिल भी नहीं है . डा दाभोलकर और उनके संगठन अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति    (अनस ) को राज्य भर में पर्याप्त जनसमर्थन हासिल था , जिसके कारण राज्य सरकार अंध श्रद्धा और काला जादू के खिलाफ कानून लाने के लिए विवश हो रही थी . आपको खूब ज्ञात है कि इस क़ानून का कहाँ से और कौन सी शक्तियां विरोध कर रही थी . इस तरह यह भी ज्ञात होना चाहिए कि हत्या का सूत्र कहाँ से जुड़ता है. यहाँ यह बता देना ग़लत न होगा कि एक दक्षिणपंथी हिन्दू संगठन सनातन संस्था ने दो महीने पहले मुंबई के आज़ाद मैदान में अपनी सभा में यह कहा था कि, 'डा डाभोलकर ने अपनी कार्यवाहियाँ नहीं रोकीं तो उनका भी वही हश्र होगा जो महात्मा गाँधी का हुआ था.


हम लेखक, कलाकार, सांस्कृतिक कार्यकर्ता, सोशल मीडिया यूजर्स और वैज्ञानिक चेतना से जुड़े आम जनों का आपसे आग्रह है कि आप अपनी सरकार को डा दाभोलकर के हत्यारों की गिरफ्तारी के साथ साथ वे सारे प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दें , जो डा दाभोलकर के अभियान के खिलाफ काम कर रहे व्यक्तियों और उनके संगठनों के षड्यंत्र को जाहिर कर सके और उनपर प्रतिबन्ध लगा सके . इस सन्दर्भ में सरकार एक श्वेत पत्र जारी करे कि किन कारणों से , किन परिस्थितियों में अंधश्रद्धा निर्मूलन क़ानून बनाने में सरकार असफल रही है . इसके साथ ही हम सभी आपसे आग्रह करते हैं कि अंधश्रद्धा और काला जादू के खिलाफ क़ानून लाकर और उनकी हत्या के स्थल पर उनकी प्रमिका लगाकर डा दाभोलकर को सच्ची श्रद्धांजलि दें .



हस्ताक्षर  
१-संजीव चन्दन
२-उमाशंकर सिंह
३-पंकज मिश्र
४-अशोक कुमार पाण्डेय
५-मनोज पाण्डेय
६-डा मोहन श्रोत्रिय
७-गिरिराज किराडू
८-आनंद कुमार द्विवेदी
९-गिरिजेश तिवारी
१०-आशीष मिश्रा
११-नूर मोहम्मद नूर
१२-कैलाश वानखेड़े
१३-दिगंबर
१४-प्रकाश के रे
१५-समर अनार्य
१६- सईद अयूब
१७-विमल चन्द्र पाण्डेय
१८-राजेश उत्साही
१९-ओमेश लखवार
२०-देवयानी भारद्वाज
२१-संजय सामंत
२२-अशोक वर्मा
२३-केशव तिवारी
२४-निलय उपाध्याय
२५-चन्दन कुमार मिश्र
२६-राजीव पाण्डेय'
२७- अनीता कुमार
२८-आशुतोष कुमार
२९ प्रोफ़ेसर गिरीश मिश्र
३०- आशीष देवराड़ी